अब तू ही बता
धुवां उठा दूर
कई दिल गवाह हैं इसके
धीमे धीमे सुलग
आंसूं से वो हुआ अब वो जुदा
अक्सर वो जो हुआ फ़िदा
प्रेम की लग्न
या प्रेम अग्न
अब क्या है अब तू ही बता
नैनो का इतना दोष था
लड़ी तब तक ही होश था
गयी वो कटी पतंग सी
उसकी हाथों में वो डोर थी
छुते ही हुआ वो असर
प्रेम की लग्न
या प्रेम अग्न
अब क्या है अब तू ही बता
बड़ता ही गया वो अकेले चुपचाप
रिश्ता वो पुराना अब घटता गया
पतझड़ में खिली वो कली प्यार की
बसंत पाने को यूँ ही तरसती रही
आते जाते गली चौराहों का साथ था
प्रेम की लग्न
या प्रेम अग्न
अब क्या है अब तू ही बता
जो फुल तोड़ा वो पास ही रहा
ना ना कर जाये वो सवाल साथ ही रहा
चेहरा उनका बस बात करता रहा
दिल को यूँ ही सांस देता रहा
मै अकेले ही खुद से बात करता रहा
प्रेम की लग्न
या प्रेम अग्न
अब क्या है अब तू ही बता
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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