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जब मै बोलूंगा


जब मै बोलूंगा 

पेड़ कह रहा है पेड़ से 
कभी साथ साथ थै 
अब दूर दूर खड़े हैं हम 
कभी एक जुट थै 
अब जुदा से लग रहे हैं 

युग युग से बखान है 
खत्म हो रहा हूँ मै बस बचा लगान है 
एक एक जीव जाती लुप्त होई
जब यंहा मेरी कमी होई है 
कभी एक जुट थै हम 
अब जुदा से लग रहे हैं 

अक्ल थी पर आराम आया 
शक्ल थी पर समान आया 
चीजों में मै ही काम आया 
यूँ ही मेरे दम पर दाम आया 
कभी एक जुट थै 
अब जुदा से लग रहे हैं 

जब मै बोलूंगा 
तब तक शयाद मै नही रहूंगा 
कंही सज रहा होंगा 
या फिर जल रहा होंगा 
कभी एक जुट थै 
अब जुदा से लग रहे हैं 

मै खत्म सब खत्म 
मै जब तक तब तक हम और तुम 
किस्सा तूने शुरू किया है 
तु ही हल निकलेगा आज मै नही कल तू नही 
कभी एक जुट थै 
अब जुदा से लग रहे हैं 

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com 
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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