गुजारिश है मेरी
एक उल्लंघन
मर्यादा के उस घेरे का
अतिक्रमण उस क्रूर चेहरे का
कब तक मन दहलेगा
कब तक शरीर लुटता रहेगा
ठेस मन भीतर लगती है
आत्मा बस चुप चाप रोती है
बिलख कर भी दुःख
उस घव भूलने नही देता
बलात्कार ये शब्द
जो कहने मात्र से घिन भाव उत्पन होता
वो ज़ुल्म उस पर गुजरा
उस अबला क्या बीतता है
दबाव, ज़बरदस्ती, दबान में
पुनः वो चुबंन कचोटती है
जब उसके वो दो लुटे नैन
दुसरे नैन से जा मिलती है
गुजारिश है मेरी आप से
इस हिन भाव को तज के
इन्साफ बस आपने लिये
एक फंदा मांगती हूँ आप से
फिर उल्लंघन करने को
वो मरजाद फिर सोचेगा
एक भी अगर बलात्कारी
इस फंदे पर जब झूलेगा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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