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जल्दी में यूँ लगी रही


जल्दी में यूँ लगी रही 

आज के परिवेश में 
देखता हूँ मै जिधर भी 
यूँ भागती ये जिंदगी है 
जल्दी में यूँ लगी रही 

कह दूँ जरा 
थोडा रुक जा दो पल
तो रूठ ती ये जिंदगी है 
जल्दी में यूँ लगी रही 

उतावली है वो 
कल-कल बहती जाती 
यूँ झरती ये जिंदगी है 
जल्दी में यूँ लगी रही 

सज़ा मिली जैसे ही 
झूलने लगी अभी से 
तो तीव्रता से भरी ये जिंदगी है 
जल्दी में यूँ लगी रही 

कुसमयता पूछा जब 
मुस्कुरा उठी तब इस तरह 
यूँ रुदन से भीगी ये जिंदगी है 
जल्दी में यूँ लगी रही 

जल्दी में ही लगी रही 
अपने से ही अड़ी रही 
तो मौत के बाद ही छूटी जिंदगी है 
जल्दी में यूँ लगी रही 

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी 
देवभूमि बद्री-केदारनाथ 
मेरा ब्लोग्स 
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com 
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत 

बालकृष्ण डी ध्यानी
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