घोल मा च्यूं घोल
अब भी रयाँ सोचदा
अब भी रयाँ खोज्दा
ये टाक्कों थे मोज्दा
ये टाक्कों थे मोज्दा
घोल मा च्यूं घोल ...२ ....रै रे भुल्हा घोल मा च्यूं घोल
गोल गोल वा दिखणी
हरालू सी वा जचणी
क्ख्क च ईंको तोल भुल्हा
शाम सबैर जिकोडी मा झोल
घोल मा च्यूं घोल ...२ ....रै रे भुल्हा घोल मा च्यूं घोल
ना ईंको कोई बुबा
ना ईंकीं कोई बोई
ना दादा ना दीदी ना भुला ना भूली ...२
तू कै रास्ता कै बाटा भुली
खीचणे खीचणे वा ले जाँदी
घोल मा च्यूं घोल ...२ ....रै रे भुल्हा घोल मा च्यूं घोल
ब्याल बिसरी परबत बिसरी
घर दूँण गढ़वाल बिसरी
बंजा पुंगडा कैकी अब
ईंकीं माया मा जंगलात बिकी
कैगै गढ़ को बांटा धार
ऐ छाल पल छल वार पार
घोल मा च्यूं घोल ...२ ....रै रे भुल्हा घोल मा च्यूं घोल
अब भी रयाँ सोचदा
अब भी रयाँ खोज्दा
ये टाक्कों थे मोज्दा
ये टाक्कों थे मोज्दा
घोल मा च्यूं घोल ...२ ....रै रे भुल्हा घोल मा च्यूं घोल
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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