कुछ कहा
हँसना गुनाह हो गया
रोना अब समा हो गया
आते जाते वो चेहरों पर
भाव अब फना हो गया
रोका था मैंने दोनों को
एक भी भाव ना रोक सका
समझया था दोनों को मैंने
खुद ही मै ना समझ सका
उभरा आते है इतना कहा
कहकर वो एक एक कर चले गये
निर्भर है तुझ पर ही सुना कुछ
वो भी मेर सुना व्यर्थ ही गया
वो भी आता जाता रहा
मै भी बस आगे बढता रहा
जीवन और मै यूँ ही बस
चलता चला बस चलता चला
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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