१९६९ चित्रपट ख़ामोशी ..हम ने देखी है,
हमण देखी च
हमण देखी च वीं आंखी की पसरती खुसबू
हाथ दगड़ छुकी, ऐ रिश्ता थै क्वी नौ नी द्यावा
सिर्फ एहसास च ये , जीयु दगडी भास् करा
प्रीत ते प्रीत रैण द्यावा क्वी नौ नी द्यावा
प्रीत कोई बोळ नीच, प्रीत की कोई आवाज ना
एक चुप च,सुण दी रैंदी वो, बोल्दी रैंदी वा
ना बुझैणी , ना रुकैणी ,ना थमैन्दी कख भी
ओस की बूंद च वा , सदियों भतेक बगदी रैंदी वा
प्रीत ते प्रीत रैण द्यावा क्वी नौ नी द्यावा
हैन्सी सी खिल्दी रैह्न्दी आंखी मा कख
होर्रि पलकी मा उजाली सी झुकी रैंद वा
ओंठ बच्चाण णी .कप कापी ओंठ मा फिरेभी
कितगा चुपी दगड कथा रुकी रैंदी चा
प्रीत ते प्रीत रैण द्यावा क्वी नौ नी द्यावा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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१९६९ चित्रपट ख़ामोशी
गढ़वाली मा ये बोल जी कंन लाग्यां जी आप थै बतवा जरुर जी
.......हमने देखि हैं.....हिन्दी गानी का ये गाने का गढ़वाली बोळ संस्करण
बालकृष्ण डी ध्यानी
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