आ अब बोंडी जोंला
ब्योली जनी नटी धरती खुल्यों च ऐ आकास --२
बुलाणु च हम थै फिर प्रीती कु वो देश
आ अब बोंडी जोंला --४
बिरड़यों छा मी अजाण छा मी
तेर प्रीती थे नी बिंगे पाई
तिल मी इनी तडपे
मी तेर समण चली ऐई
तेरु स्वासा दगडी मेरु जीवण
मेरु जीयु मा तेरु कुडा
जरा देखैली क्वी इना भी
ऐ स्वर्ग जनी च सुंदर
बिन तेरु अब नीच धीर
नीच धीर अब यख
आ अब बोंडी जोंला --४
एक बगता बाण एक दिन बाण
नी जोंलों दूर अब तैंसे मी
तेर आंखी की इन गोंल्यों मा
सुपुनीयाँ की मी खटूली संजोंली
तिथै देखलू तै दगड प्रीत करलों
तेर खुसबू मा मी खो जोंलों
ऐ च मेर इछा बयाँ मा मी तेर से जोंलों
औरी विपदा नी सैण
नी सैण अब यख
आ अब बोंडी जोंला --४
ब्योली जनी नटी धरती खुल्यों च ऐ आकास --२
बुलाणु च हम थै फिर प्रीती कु वो देश
आ अब बोंडी जोंला --४
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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