मेरी खुठी
लागी लागी कुदगली
त्यूं यूँ नंगी खुठीयूँ मा
ऐण लागी खुद मी थै
अपरा वो बिता दिनों का
लगी वहली वख बरखा
उन बीहडा बाणों मा
कंडली को चटका लगीगै
त्यूं यूँ नंगी खुठीयूँ मा
बडुली मा लगी लागू
जिकोड़ी कू अल्जो धागों
मन मेरु पिछणे भागो
लपका णा कूँण अग्ने भागो
हाथ नी आईयां कुछ
रैगै ईं आँखयूँ मा आंसूं
अपरों का खुदी दाडीगे
त्यूं यूँ नंगी खुठीयूँ मा
ऐ मेरी खुठी तू चला चल
सुपिनीयु मा गढ़ देश चल
छोटों मेरु वख सब कुछ
मेरु तू वो देश चल
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत
बालकृष्ण डी ध्यानी
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