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किले मन



किले मन

किले छे टपराणू मन
किले छे भरमाणू मन
दोई दिना की जिंदगाणी
किले छे हरसाणू मन
किले छे बोल किले छे

यकुली मी लगुली
कथा अपुरी सुणूली
माया कू बीज खत्यां
भूमी भूमी मा वो बटयाँ

किले छे बोलाणू मन
किले छे लटाणू मन
किले तू हसाणु मन
किले तू रुलाणु मन
किले छे बोल किले छे

अपरा मा लगीरै तू
अपरों बाण मरीले तू
फैदा नुक्सान का बीच
झुला बणी झूलीरे तू

किले णी तिल जाणी मन
किले णी पछाणी मन
किले तू इनी लगी राई मन
इन लगी की क्या पाई मन
किले छे बोल किले छे

इनी लगी रलूं मी सदनी
कभी तेरी मनसा णी भरली
ऐलू जब बगत वो आखैर कू
तब तेथै मन दशा समजेली ...३

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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