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वो मोमबत्ती



वो मोमबत्ती

वो मोमबत्ती
से दीदी मेरी पुछ रही

वो बत्ती जलती रही
मोम पिघलती रही

जल जलकर
वो बुझ वो गयी

जो चिंगारी
बनी कभी वो मशाल थी

इंसाफ से अड़ रही
ना बालिग समझ रही

पथ से भटक रही
दामिनी अब तक तड़प रही

है वो अभी भी यंही कंही
हम से वो पुछ रही

वो कैसे नाबालिग
ये कैसा इन्साफ

अस्मत पर जिसके
हो आ है जो अघात

राख के धुल में
वो अब भी इंसाफ खोज रही

वो मोमबत्ती
से दीदी मेरी पुछ रही

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
मै पूर्व प्रकाशीत हैं -सर्वाधिकार सुरक्षीत

बालकृष्ण डी ध्यानी
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