बस वो पल
पहाड़ों की सुंदरता के पीछे एक दर्द छुपा है
अपनों से बिछड़ने का बस वो पल छुपा है
जितनी सुंदर चीज हो गम उतना ही होता है
दर्द रोक रोक कर बस अब वो सुलग उठता है
धुंआ चारों ओर फ़ैल हुआ है अब इस कदर
दिलों पर अब भी मैंने उसका सामान बंधा रखा है
गीली लकड़ी की तरंह हर तरफ अब तो वो अग्न है
हर घर के दरवाजे पर मैंने उसकी तपन महसूस की है
रुक्सत होना अब तो आदत सी हो गई है हमे इस तरह
दास्ताँ ऐ अलविदा का उस पहाड़ों पे गमों का गाँव बसा रखा है
खुला खुला दिखता है कितना सुंदर वो नजारा यंह से
आँखों से छलक ते आंसूं का बस पैगाम लिखा रखा है
पहाड़ों की सुंदरता के पीछे एक दर्द छुपा है
अपनों से बिछड़ने का बस वो पल छुपा है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ