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फिर पुकार है तुझे



फिर पुकार है तुझे

बस उस पुकार को
अनसुनी कर चला गया था तू
देख फिर वो सुबह होई है
फिर पुकार है तुझे

दूर जाते देखा था तुझे यूँ ही
बस ये आंखें बोल रही थी
वो तब भी बोल रही थी
वो अब भी देख रही है
फिर पुकार है तुझे

ये दिल चुपचाप चिला रहा था
अपना जख्म बता रहा था
वो तब भी चिला रहा था
वो अब भी बता रहा है
फिर पुकार है तुझे

गिरते अस्कों ने कोशिश की रोकने की
मगर तू एक बार भी ना पीछे मोड़ा था
वो अब भी कोशिश कर रही है
उस राह को अब भी मोड़ रही है
फिर पुकार है तुझे

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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