वो वर्ण मेरा
दो रंगों के लोग यंहा
तीन रंगों का देश मेरा
उस रंग को रोग़न करने मै चला
रंगों परचम लहरता मै
क्या लागे है वो मेरा
अब भी अकेला खड़ा देश मेरा
काले गोर का भेद यंहा
छुत अछुत से अब भी नाता है
वो जाती भेद मिटने चला
पुरुष नारी की आभा में
अपने पुरुषार्थ से हार मै
नारी को मै हक दिलाने चला
रोता वो पानी है रंग बैईमानी है
भूख पेट लड़े वो सुखी रोटी है
वो भूख मिटने मै चला
झूठापन का लेप लगा
हमारे पैसों पर घपलों का रोग लगा
उस काले को सफेद बनाने चला
देश मेरा बिखरा पडा
रंग बिरंगी रंग में सजा
आज उसे एक करने चला
दो रंगों के लोग यंहा
तीन रंगों का देश मेरा
उस रंग को रोग़न करने मै चला
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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