थमी ऐ जिन्दगी है बचालो
चलो आज मै कुछ अलग करूँ
अपने गम से निकल के खुशी की ओर चलों
ठहाकों की गूंज में दर्द हल्का करों
रोते रोते आज हंसी से जरा जा मिलूं
तो शुरुवात करता हूँ अपने पर हंसकर
दर्द जाये थोड़ा उभरकर और निकलकर
एक शेर की बात थी दुम दबाकर बैठा था
घर की चार दिवारी को ही खुद घेरे बैठा था
मैंने पूछा जा समीप ....और समीप से जब पूछा
थोड़ा वो झुंझला फिर वो झलाया
और समीप जाने पर वो गुराया या सकोचा फिर कहा मुझसे
श्रीमान खुद के घर में ऐ हाल है तू बाहर क्या होगा
तो उसने कहा बीबी की सेवा ही अब मेवा है मेरी
वो ही दिल दिमाग और देवी है मेरी नारी समान की इच्छा जगी है
अपने घर से आगाज करने की ठानी है मैनी
कंही कोई बैईमानी ना कर जाऊं मै खुद से ही सोचा मैंने जब खुद से ही
उसको दुखी रखकर कर कंहा खुशी मै पाऊँगा
उसकी मंजूरी में ही अब मै ऐ शीश हिलाऊँगा
बेशक इस इश्क कु तुम समझो जोरो का गुलाम
उसके मान में ही है अब बस मेरा मान
घर से ही मै आज शुरवात करता हूँ
बाहर जाके मै ना खोकले दवा करता हूँ
अपने आँगन को ही फूलों से सजाओं
मेरा मानना है की खुद के घर से देश को बनाओं
मेरी सोच सोच मिलकर एक उपवन बनायेगी
माँ बेटी बीवी तब ही इस धरा पर बच पायेगी
सुन शेर की बात ,उसने सोच मै डाला मुझे
वो फूलों से ही सही और मै गम से ही अब देश को हंसाऊँ
फिर लौटकर आया गम फिर मैंने गले लगया
महता सबकी अपनी अपनी मिलके ही थमी ऐ जिन्दगी है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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