दो जोड़ दो छोड़
दो जोड़ दो छोड़
हर एक मोड़ तोड़
लगी है बस होड़
ध्वनि का घोष
सार्थक है वो दोष
कोलाहल का शोर
लफ्ज़ आवाज़ का
स्वन का था साथ
फ़ुटनोट की पास
टिप्पणी हो ख़ास
हर बात की बात
उदासी की रात
भोर से शुरवात
दोपहर के बाद भी
शाम की वो पुकार
फिर रात के हाथ
थामी है जो हमने
पायी है सब ने
दो जोड़ दो छोड़
हर एक मोड़ तोड़
लगी है बस होड़
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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