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पंछी उड़ने को बेकरार



पंछी उड़ने को बेकरार

आज खोजों मै बाहर
वो कब से बसा भीतर मेरे

अंजान मै अहम धारी हूँ मै
मै फिर रहा हूँ दर दर तेरे

मन सुख से भटका ऐसे
तन सुख से जा अटका ऐसे

रही ना खबर मुझको मेरी
जिंदगी छोटी बरसों पहले

जब एक चाह ने जन्म लिया था
पूर्ण होते ही दूजे ने घेर लिया था

अक्कल दंता आयी जब
उम्र यूँ ही गुजर जाने के बाद

अब टटोलों मै खुद को
पंछी जब पिंजड़े से उड़ने को बेकरार


एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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