मै खुश हुआ
देख खड़ा हूँ चोटी पर
निहार रहा हूँ उस स्वर्ग को
पूंछ ले तू अपने आप को
क्या मैंने अपने आप से सत्य कहा
मै मानता हूँ अपने को
अपने आप मै यूँ ही ढलता हूँ
ले प्रकृती की की छटा मै
हर रंग के सपने मै बुनता हूँ
कितनी कथा जन्मी होगी
कितनी व्यथा दबी पड़ी होगी
पीड़ा की कहनी में सुख की कमी होगी
आँखों हंसी में आंसूं की नमी होगी
शांत दीख रहा है आज वो
हरियाली को लेके साथ वो
उजाड़ा पड़ा था कभी वो भी
अपनो को दूर जाते देखा उस राह को
कंही आवाज का शोर गूँजा
विचलित हो कर मन मेरा मोड़ा
पगडंडी से बनी रहा देख कर
पहले भी कोई आया यंहा मै खुश हुआ
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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