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देख लेंगे



देख लेंगे

कैसा देश है तेरा
कैसा देह है वो मेरा

देख रहा बस चुपचाप
दो दिन के हो-हल्ले के बाद

लो कर लो घपलों की
हर एक दिन नई शुरवात

एक थमी भी नही थी
दूजे की हो गई बरसात

कितना लुटा तूने
कितना और लुटेंगे आप

कैसा पेट है आप का
खा खा कर भरता नहीं जनाब

हरे नोटों की हरयाली
बनाली तूने बगिया न्यारी

दफ्तर हो या घर
तू हर वक्त नोटों का अफसर

दीमक की तरह चिपका ऐसा
पैवीकौल का जोड़ा हो जैसे

दीवार अम्बोजा से बनवाया
नोटों का ही सीमेंट तूने लगवाया

देख लेंगे आप को हम ऐसे
ख़बरों में यूँ ही दिन रात जैसे

स्विस बैंक में सो रहे हैं हम
हमारे गढ़े मेहनत के वो पैंसे

सो सब सो चुके है
अपनी अपनी हिस्से की वो ले चुके हैं

लो कर लो घपलों की
हर एक दिन नई शुरवात

एक थमी भी नही थी
दूजे की हो गई बरसात

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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