मन क्या सोचे
मन क्या सोचे ,मन क्या पाये
चलो आज बातें करें,इस मन से ..२
आखें चार चार करें अब इस मन से
थोड़ा सा कर लो तुम भी प्यार इस मन से
चंचल है उछलता रहता मन बेचारा
बैठे किस पुष्प पर वो जा भोंरा बनके
रहता नही वो किसी के भी बस में
हरदम वो है अब अपने ही मस्त में
मन तो मन है यारों उसके कई रंग हैं
दुःख सुख को भी मिले वो एक मन से
मनमीत मीले या मिले बेवफा की रीत
हर ऋत में वो खिले मिले पतझड़ से
मन को ना मारो मन को ना जीतो
बस मन संग सखा बन मन संग विचरो
मन के हरे हार है मन के जीते जीत
मन को ही बना ले मनुज तू अपना मीत
मन क्या सोचे ,मन क्या पाये
चलो आज बातें करें,इस मन से ..२
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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