अपनों में ही
अपनों में ही आज पराये दिखे
सपनो में ही बस वो मुस्कुराते दिखे
टूटकर,रूठ कर वो भी अब जाने लगे
सवेरे के स्वर जब कानो में आने लगे
अपनों में ही आज पराये दिखे .....................
कोशिश की थी मैंने और सोने की
उन सपनो को अपने से ना खोने की
रोशनी अँधेरा बंद छा गयी कुछ ऐसे
आँखें,आंसूं भी ना रुक पाये जाने से उनको
अपनों में ही आज पराये दिखे .....................
अंधेरों से अब मुलकात अब यूँ बढने लगी
गली और मौहल्ले में मेरी बात होने लगी
आच्छा था वो जब तक इश्क ना किया उसने
अपनों में दिख जाता था जो आज हुआ पराया
अपनों में ही आज पराये दिखे .....................
अपनों में ही आज पराये दिखे
सपनो में ही बस वो मुस्कुराते दिखे
टूटकर,रूठ कर वो भी अब जाने लगे
सवेरे के स्वर जब कानो में आने लगे
अपनों में ही आज पराये दिखे .....................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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