मै बस मै
गुमसुम खड़ा है वो
लगता है सबसे जुदा वो
मै बस मै
अजूबा है या हकीकत
इंसानियत है या आदमी है
मै बस मै
विचार बढ़ा लग रहा है आज
फैसला अब आप पर है
मै बस मै
पड़ा वो कंही सडकों पर
सोया वो ऊँचें महलों पर
मै बस मै
कंही भूख का ना नमोनिशान
कंही भूख ही है पहचान
मै बस मै
अजीब तेरा संग अजीब वो रंग
पल पल बदले वो तो हरपल
मै बस मै
आदमी है मुसाफिरखाना
एक को आना,एक को जाना
मै बस मै
फितरत छुपी आज कंही
इंसानियत दबी आज वंही...३
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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