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एक खालीपन है



एक खालीपन है

एक खालीपन है
छुपा है कंही ना कंही
अंतर मन और बाहरी पन
के पाटों में पीसा हुआ है
एक खालीपन है .......

ओझल है वो आँखों से
बोझल है वो अब बातों से
एक तरफ छाया घोर वीराना
एक तरफ घिरा अपनों का आशियाना
एक खालीपन है .......

हवा के जोर से बजता कभी
अपने बोझ तले दबता कभी
निकल जाता कभी चुपचाप
कभी निकलता है चिल्लाता हुआ शोर कभी
एक खालीपन है .......

अखरता है किसी पल वो बहुत
याद बन अकेला में याद आता है वो बहुत
इस तरह बाँट गया सबके हिस्से वो
खाली खाली खलता है वो बहुत
एक खालीपन है .......

एक खालीपन है
छुपा है कंही ना कंही
अंतर मन और बाहरी पन
के पाटों में पीसा हुआ है
एक खालीपन है .......

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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