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बदनाम गलियाँ


बदनाम गलियाँ

देख सडकों पर खड़ी है वो
किसी की बहन किसी की बेटी है वो
चेहरा पुता है ओंठ रंगीले
मजबूरी इतनी की बनी मनचली है वो
देख सडकों पर खड़ी है वो .............

बदनाम गलियाँ की दास्तान सुनाती
आँखों गम छुपा उसे नशीला बनाती
अंधेरी रातों में सजती,बिकती है वो
जिस्म बस उसका है आत्मा नही है
देख सडकों पर खड़ी है वो .............

दर्द गूंजता रोज बदनाम गलियों
आबरू रोज नीलाम होती उन मंडीयों में
समाज के ठेकेदार ही बोली लगाये
अबला को दल-दल में फसने से कौन बचाये
देख सडकों पर खड़ी है वो .............

हीन भावना से भरी है समाज की नजरें
कैसे उन से नजरों से मेरी नजरें मिले
कंही ना कंही मै खुद को ही दोषी पाता हूँ
वासना मिटने मै उस बदनाम गली जाता हूँ
देख सडकों पर खड़ी है वो .............

हवस का शिकारी बन मै ऐंठ जाता हूँ
उस टूटे दिल का कोमल अहसास क्या पाता हूँ
लड़खड़ा कर रोज उस गली मै जात हूँ
उनकी मजबूरी का सौदा रुपयों से चुकता हूँ
देख सडकों पर खड़ी है वो .............

शर्म हया नही मुझ में ज़रा सी रती भर
इंसान कहता हूँ मै आज किस तर्ज पर
शोषण को शोषित मै ही रोज करता हूँ
वो नही खड़े मेर लिये क्यों उस गली मै गुजरता हूँ
देख सडकों पर खड़ी है वो .............

बदलेगा ऐ मोड़ भी और वो छोर भी
पहल कर एक हाथ का उनकी ओर तो बड़ा बंदे
छुपा होगा ईश तेरे भीतर उसको जगा बंदे
उनकी तकलीफों देख तेरी आंखें भीग जायेगी
एक ना एक दिन उनके लिये वो सुबह जरुर आयेगी

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित —बालकृष्ण डी ध्यानी
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