एक मकसद बाकी है
देख जाना था मुझको दूर
पर ना जाने दिया आपने
गया था कुछ दूर बीच राह से
मुझको लौटना पड़ा कुछ काम से
रह गया था एक मकसद अधूरा
जो अब तक ना हो सका पूरा
एक मकसद बाकी है
बांध ना अब तक अपनों के एक डोर से
उस पहाड़ की भुजाओं की ओर से
अब तक नाकाम था अपने आपसे
हाथ थाम आपने मेरा अपने हाथ से
तो चलों हम चलें साथ साथ से
एक मकसद बाकी है
कैसे छोड़ चला जाऊँगा इस मोड़ से
मोड़ना है कितनों को उनके मन के मोड़ से
टूट चुका है वो उसके जवानों के खोने से
छोड़ जाऊं कैसे उसकी उम्मीद तोड़के
ना मैं ना जाऊँगा आप सब लोगों को छोडके
एक मकसद बाकी है
देख जाना था मुझको दूर
पर ना जाने दिया आपने
गया था कुछ दूर बीच राह से
मुझको लौटना पड़ा कुछ काम से
रह गया था एक मकसद अधूरा
जो अब तक ना हो सका पूरा
एक मकसद बाकी है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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