स्त्री और आज
कार्य भार से गर्हित
काम और आधार का बोझ
कृत्य से फलित विचार
कर्म से दिखता आचरण
क्रिया का वो चलन
निकट था कभी वो
समीप था बस खड़ा साथ
पास के पास बिलकुल करीब
अदूर था वो देह हवस
समीपस्थो के सीमा परे
कड़ा था वो नियम
कठोर वास्तु स्थिती
क्रूर वो मन की सोच
पुरूष का हुआ था हनन
निष्ठुर पथ दामिनी का
अब कलंक लगा है
लांछन खड़ा देख चार रस्ते
दोष अब भी बरकरार
दाग के अब भी रोज लगते धब्बे
तोहमत की सजी रात
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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