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मेरा गाँव


मेरा गाँव

क्या बात है
वो अब भी
मेरे गाँव की
किसी कोने के साथ है
याद आता है
यादों में
ले जाता है
मुझे ख्यालों में
मजबूर कर देता
वो सपनों में
आँखों को दो आंसूं
टपकने को
पीपल की
पाती की तरहा
वो मन को
हिलता डुलता है
हाथ पकड़कर
मेर वो अब भी
माथा चूम लेता है
मेरा सपना
टूट जाता है
वो मुझको
रोज यूँ ही
अब ठग देता
रास्ता धुंधला है
पर फिर भी
उस रहा पर
सपने में ही सही
वो एक पग
धर देता है
क्या बात है
वो अब भी
मेरे गाँव की

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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