अब भी
अब भी भागता हूँ
उस बचपन के पीछे
बुढपे को छोड़ के
अपनों के पीछे
कमर करने लगी शोर
दिल हुआ कमजोर
हड्डियाँ में उभरा दर्द
लाठी को छोड़
टूटी ऐनक को जोड़
हौसला कंम नही है
फूलती सांसों का जोर
पकड़ लूंगा अपनो को
जो गये दूर मुझे छोड़
अब भी भागता हूँ
उस बचपन के पीछे
बुढपे को छोड़ के
अपनों के पीछे
अब भी ...............
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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