वो देखता तेरी ओर है
सुर्ख हवा का जोर हैं बस
आदमी तू कितना कमजोर है
हिल जाता आहट मात्र से
जब मन के भीतर बसा कोई चोर है
मन में चिंता की बस धुल जमी रहती है
तब जाकर संतोष की कमी बहुत खलती
टूटता है सपनों के पीछे पीछे दौड़ हर रोज
मन उसे पाने की लालसा जब मची होड़ हो
मन और दिल के रस्ते आते जाते खींचे खींचे
खींचें हाथों की लकीरों और तकदीरों की जोड़ है
कशमकश के दो राहों में बटे वो तो ऐसे
आदमी तेर पल पल बदलते रिश्ते की डोर है
अहम लालच माया की जंग में हरदम हार है तो
दया परोपकार भावना जो भूल गया आज किस ओर है
भूल बैठा है तू आज ऐ भी अपने आप से
कोई तो बैठा है दूर उस पलक के पीछे देखता तेरी ओर है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ