वो कंही नही है
आज है अभी है
वो फिर कभी नही
गुजर गया वो पल
वो कंही नही है
जो कुछ है अब है
कुछ नही वो कल है
सोच ही अब सब है
ना समझ ये जग है
फिरेगा फिर भी
करेगा वो अपना ही
फसा ये ऐसा फंसा है
बुझिल बस साँस है
मंद गति का मंथर
सर सर उपर निचे कर
वायु का वो चाप है
छुटी तो वो बेकार है
आज है अभी है
वो फिर कभी नही
गुजर गया वो पल
वो कंही नही है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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