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ख़्वाब हैं



ख़्वाब हैं

रात है नशीली
अलबेली वो अकेली
एक अनसुलझी पहेली
ख़्वाब बस ख़्वाब हैं .....

डाला के टूटे पत्ते
अछूते वो बनते बिगड़ते रिश्ते
बस एक पल का अहसास है
ख़्वाब बस ख़्वाब हैं .....

उभरते चेहरों के किस्से
अधूरे आशा के वो हिस्से
मन में उठी बुझी प्यास है
ख़्वाब बस ख़्वाब हैं .....

अंधेरा रोशनी का साया
ख़्वाब में वो मिलने आया
मोड़ा में जो रहा गया पीछे
ख़्वाब बस ख़्वाब हैं .....

खोज है उन नैनों की
दिल में छुपे किसी कोने की
आधे अधूरे उन सपनो की
ख़्वाब बस ख़्वाब हैं .....


एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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