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रूठा है दिल



रूठा है दिल

रूठा है दिल
अब मनाओं कैसे
इस दिल को
अब बहलाओं कैसे
रूठा है दिल ..................

रोज फिरता है
वो गलियों में तेरे
अपने आप से देखे हुये
उन सपनो को घेरे
रूठा है दिल ..................

मिलता ना चैन
ना आराम इस दिल को
कैसे दे कर जायें हम
पैगाम उस रूठे दिल को
रूठा है दिल ..................

इन ही विचारों में
अब वो खोया रहता है
ना जागा वो दिल
ना सोया रहता है
रूठा है दिल ..................

उम्मीद है की वो
एक रोज मान जायेगा
आप ही बतावो
क्या ये वक्त कभी आयेगा ?
रूठा है दिल ..................

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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