एक सपना
देखा उन हाथों को
कुछ वो लिख रही हैं
अपने में लगी वो यूँ ही
हमसे कुछ कह रही
सपना उसके साथ
अपने आप पल रहा है
एक लक्ष्य तीर सा
मछली का आंख भेद रहा है
उम्मीदों की बरसात
विशवास का वो आगाज
हौसलों की ये उड़ान
मिलेगी उसे एक दिन पहचान
बस उसे चाहीये सिर्फ
तुम्हरी एक मुस्कान
आधार उन उंगलीयों का
कुछ पल का तुम्हरा साथ
देखा उन हाथों को
कुछ वो लिख रही हैं
अपने में लगी वो यूँ ही
हमसे कुछ कह रही
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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