फिर बाटा बिरडीगे तू
हे मेरी माया कू थैलू
भोर भोरिक निस्डू रै तू
बाँझ जीकोड़ी कू रै गेल्या
टाक्कों दगडी अल्जी गै तू
गढ़ हरलू छोड़ीकी हे जीयु
नोटों हरलू मा हर्ची गै तू
बोल्या मेरा गढ़देश कू
फिर बाटा बिरडीगे तू
दिन सरेना रात गैन
तेरा गैना अबी भी णी गढ़ेण
सुप्नीयु का वहैगैणी तेरा छेलू
भूलीगै तू अब अपरा पितरू
कंण दिशा भुला व्हगै तेरु
कंडा ये देशा का खुठी घुसैनी
देबता भी अब रूठी णी तै कू
फिर बाटा बिरडीगे तू
हे मेरी माया कू थैलू
भोर भोरिक निस्डू रै तू
बाँझ जीकोड़ी कू रै गेल्या
टाक्कों दगडी अल्जी गै तू
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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