पिताजी दिन
हो गये कंहा ओझल वो पल
आँखों में ऐनक है आंखें अब नम
अंगुली पकड़कर वो मेरा चलना
वो बाग़ पाठशाल से मेरा मिलना
पीठ पर की थी कभी घोड़ स्वारी मैंने
वो मेरा मस्ती से पीठ पर उछालना
पड़ाई और वो मेरा लड़कपन
दिल में प्रेम बाहरी कोठरता का आवराण
कदम कदम पर उनका साथ चलना
गिर पड़ा मै फिर उठाकर चलाना
याद आता है अब हर एक एक पल
पिताजी का जब मुझ से दूर चलना
हो गये कंहा ओझल वो पल
आँखों में ऐनक है आंखें अब नम
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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