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ज्ञान सूरज


ज्ञान सूरज

घर में ही ......
हिंदी और इंग्लिश की तकरार में
मेरी खो गई पहचान जी
कल तक मै बोलता था महान जी
बेटा बोलने लगा... डैड देट इस कूल जी

रस्ते में चला.....
ना देखा ऐसा भी कोई स्थान जी
ना ही कोई ऐसा कोई स्टेट जी
लड़ते ना वो एक दुसरे को
जैसे सास बहु की हो भेंट जी

रहा में बैठे होये.....
फकीर की कटोरी में मैंने
जब डाला १० रुपये का नोट जी
तब लगी ठेस उस के उस हार्ट को
उस ने कहा डॉलर नहीं पास जी

जब दूर निकल गया ......
टहलते टहलते जब मै दूर निकल गया
एक ट्रीरी के नीचे बैठ कर रेस्ट किया
सुस्ता सुस्ता के सीलीप कीया
ड्रीम में उन दोनों को फिर साथ किया

समझ जब आया ......
जब समझ आया तो मै हो गया लेट जी
लेट लेटकर सारा जीवन चला गया वेस्ट जी
ईस्ट और वेस्ट बस इतना ही फर्क
ज्ञान सूरज उगता यंहा ढलता उस देश जी

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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