ADD

वक्त अब ये


वक्त अब ये

दर्द को
कम होने ना देना
पीड़ा को
तुम सह लेना
कष्ट तो
बड़ते ही जायेंगे
वेदना यूँ
उभर कर आयेगी
व्यथा अब
खुद कथा लगायेगी
दंड फिर भी
यूँ ही मिलता ही रहेगा

शूल तो
अब चुभती रहेगी
टीस वो मेरी
अब वो उभरती रहेगी
तरस ना
अब कोई खायेगा
करुणा अब
जाने कंहा खो जायेगी
विपत्ति में
दूसरों की याद आयेगी
आंखें बस
अब धार बहायेगी

कोने में वो
किसी से लगा रहेगा
रेखाओं में
खुद से घिरा रहेगा
दीपक से कभी
ज्योती से वो
यूँ ही अँधेरे में
अँधेरे से लगा रहेगा
कुछ उभरेगा
कुछ तड़पेगा
वक्त अब ये
यूँ ही निकलेगा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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