राहत
राहत
आज हो रही नीलाम जी
सहायता पर
अब लग गये हैं दाम जी
आराम से रह गये
चोर लुट गये अनाज जी
प्रधान नींद ऊँगते रह गए
आज सारी रात जी
विपदा में भी इन्हें
कैसे आता आराम जी
चैन इनकी
क्यों ना पड़ी बीमार जी
उभड़ी हुई नक्काशी
तरकसों के अब हाथ जी
विराम में उनके
श्रण भी ना मिलता आराम जी
स्थगन मामला
सहायताप्रदान का बस काज जी
विपत्ति हो रहा राहत
कैसा मजाक जी
संकट में भी हो रहा
अधर्म का राज जी
निवारक है
उनका कामकाज जी
अनुतोष बस हो रहा
यंहा बदनाम जी
राहत
बस लुट रहा हैवान जी
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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