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देखना शाम को


देखना शाम को

देखना
इस शाम को जाते हुये
भेंट करना
मेरा उनको निहरते हुये
मालूम था
मुझे बैठी होगी वो
ध्यान ना देना
उनका मुझको ढूंढ़ते हुये
अवलोकन बस
अब परीहारी था
दर्शन करना अनिवारी था
जांचना या
जांच लेने का बहाना करना
ध्यान लगाकर
और उन्हें मालूम करना
सामना करने
से घबराना मेरा
प्रतीत होता हर बार
यूँ अभिमुख होना उनका
समझना और बूझना
या फिर अनुभव करना
बस महसूस करना
या फिर ताकना
औरक कंही खोजाना
मेरा अनुसंधान करना उनका
ठीक निशाने पर निगाह लगाना
मन में टांक कर जात है
याद वो आत है
शाम की फिर से वो
सूचना दे जाता है
बीच बीच में कह जाता दहै
मुझसे बतला देता
वो इत्तला देता
मुझे विचार में खो देता
मेरा फिर निर्णय करना
फिर सोच में पड़ जाना
प्रभेद में डाल देता
उलट-पुलट कर मुझको
जमाने के नजरों से
उसे फिर ओझल कर देता हूँ
देखना
इस शाम को जाते हुये
भेंट करना
मेरा उनको निहरते हुये

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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