५४ प्रकार भोज
आलू टमाटर
अदरक लहसुन
प्याज की वो गाने लगे धुन
सुन सुनकर मेरी धुनें
श्रीमती,बाजार जाओ
ज़रा आओं तुम घुम
कुछ और नही तुम्हे है लाना
रोजमरा की चीजे बस तीन
मिर्ची हरा पुदीना चुन
धनीया लाना थोड़ा बुन
लेखन से ले कर छुटी
छुटू को लेकर स्कूटी
पहुंचा गये बाजार हम जी
देख कर वंहा का हाल
टमाटर के जैसे हो गये गाल
कीमतों ने पसीना निकला
बटवे ने सीना निकला
दुबके पिचके बटवे का हाल
छुटू को ले हाथों में थम
स्कूटी भूल वंहा बाजार
बिन खरीदरी घर लौटे हम
रहा गयी सारी हेकड़ी गुम
गुमनाम मै बाजार घूम
सपने को नही अपने को चुन
लेखनी ही मुझे आती है
असली घर तुम ही चलाती हो
दल नही रोटी नही
कभी तो तुम भूखे ही सो जाती हो
कभी कभी पानी से ही
तुम अपनी भूख मिटाती हो
नमक को जीव्हा पर लगाकर
५४ प्रकार भोज सुख पाती हो
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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