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सूरत


सूरत

इस सूरत में ही
आदम अब इजहार करता है
प्रीत को आज अनुकूलता
के अनुसार इकरार करता है
नही रहा वो आँखों का मेल
खत्म हुआ वो प्रेम का पेड़
बस पनपा अब हवस का खेल

आकृति अब उभर कर आती है
रज़ामंदी की प्रेम में अब मंदी है
शरू हुआ छिना छपटी की रेल
घटना पहुँची बस नुक्कड़
वो सुनसान राहों के मोड़ा
स्थिति अब बद से बदतर हुई
प्रेम की हालत अब खच्चर हुई

एक नया कंडा
रोज अब ख़बरों में छाता है
हैवानियत चेहरा उभर कर आता है
पीड़ित मुख, सूरत, शकल छुपती है
डर के भाव उभर आते हैं
उन आकृति से वो चुपचाप अब पुछा करती है
संख्या प्रकृति की अब बड़ती जाती है
उसकी लज्जा अब लुटती जाती है

अंक का अब अधिकार हुआ
रूप का बस मोहपाश हुआ
अवसर अब वो खोजने लगा
मौक़ा और संयोग अब ताड़ने लगा
भाग्य स्थिति का था जोर
ढंग, शैली अब भांति की ओर
साधन, प्रणाली थी कमजोर
आदमी के व्यक्तित्व पे
अब बंध गयी शक की डोर

राज्य, स्थिति की अवस्था
बड़ी विकट घनघोर
सरकार रही बस अपना को छोड़
राष्ट्र रहा बस मोमबत्ती को खोज
संगठन और संस्था रही
परिस्थिति को अपने से जोड़
इत्तफ़ाक़ बस सूरत से हुआ
प्रेम बस स्थिल हुआ
स्थिल हुआ
स्थिल हुआ

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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