मेरा सलीखा
अपना गम उठाये मै जी लेता हूँ
नजरों से पी थी कभी अभी अश्कों को अपनी पी लेता हूँ
अपना गम उठाये मै जी लेता हूँ.................
गम ना कर मेरे ऐसे खोने का
खोकर भी मै तेरे उस ठोकर के सहारे जी लेता हूँ
अपना गम उठाये मै जी लेता हूँ……………
शाम होती थी मेरी कभी घर था वो मेरा
अब राहों में खिजाँ का आशियाँ सजाकर रह लेता हूँ
अपना गम उठाये मै जी लेता हूँ……………
बहते नहीं थे अश्क मेरे उन बहारों में
अब उन अश्कों का विरानो में मधुबन बनाकर रो लेता हूँ
अपना गम उठाये मै जी लेता हूँ……………
अपना गम उठाये मै जी लेता हूँ
नजरों से पी थी कभी अभी अश्कों को अपनी पी लेता हूँ
अपना गम उठाये मै जी लेता हूँ.................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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