पहाड़ मुझे बुलाते हैं
आज भी पहाड़ मुझे बुलाते हैं
सपनो में मुझे वो साथ ले जाते
पत्थरों के उस देश में मेरे
सीडीनुमा सजे वो खेत में मेरे
गाँव कहते है वो उसे शायद
याद करते हैं वे भी उसे कभी शायद
मुझे वो सब कुछ याद दिलाता
वंहा भूले छुटे भेष की बात सुनाता
आगोश में मुझे वो यूँ भर लेता
माँ की ममता की छाँव कर देता
पिता सा कठोर है वो तन से
सीने से लगा मन में निर्मल गंगा जल भर देता
बचपन गुजारा जिस पगडंडी मैंने
जिस पाठशाला हाथो में पड़ी थी डंडी
जंगलों में मेरे वो मौज भर देता
हौज अपने आनंद की डुबकी भर लेता
पीपल का पेड़ा वो चिड़िया की चहक
गीत मेरे गाये अब भी वो बेधडक
उसको अब भी सब कुछ पता है
बस मै भूला वो याद करता अब भी
बस अश्रु की धारा मेरी आँखों से बहती
पोंछ कर वो कहता है अब तो आ जा तू जल्दी
आज भी पहाड़ मुझे बुलाते हैं
सपनो में मुझे वो साथ ले जाते
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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