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गांधी लाठी

गांधी लाठी

फिर
क्रांती की मशाल थामकर
चलता है ये मन मेरा
फिर शहीदों की ख़ाक पर
फक्र होता है ये तन मेरा

अब
क्रांती क्यों आज लहूलुहान है
पग शांती का किस लिये परेशान है
अहिंसा का कभी गीत गाने वाले
हाथों में उनकी अब क्यों तलवार है

तब
एक ज्योत जली थी
उस संग सब प्रज्वलीत हुयी थी
नारा था वो अहिंसा का
पूरी दूनिया नत मस्तक हुई थी

खोया
अब सब कुछ खोया सा लगता है
आत्मा या फिर विशवास सोया लगता है
फिर वैसी लाठी की जरूरत है
फिर मेरे देश को गांधी की जरूरत है

फिर
क्रांती की मशाल थामकर
चलता है ये मेरा मन
फिर शहीदों की ख़ाक पर
फक्र होता है मेरा ये तन

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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