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मेरा उधार पड़ा है


मेरा उधार पड़ा है

रिश्तों का ये व्यापार बड़ा और खडा है
यंहा पर सब का सब मेरा उधार पड़ा है

बस खुशी यंहा तब तक ही मिलती है
जब पगार मेरी वो घर तक जब आती है

दो पखवाड़े मेरे चैन से तब गुजर जाते हैं
बस तब ही हम अपने घर में आराम पाते है

फिर दो पखवाड़े बाद चैन मेरा कंही खो जाता है
उस बाद मेरी नींद को चैन हराम हो जाता है

बंधा रहता है तब तक साथ वो प्रेम मेरा
घिरा रहता है संग मेरे वो प्यारा मीत मेरा

बाद फिर से मेरे जीवन में वो तन्हाई आ जाती है
आटे दाल की रुसवाई तब साथ मेरे होती है

एक माह का मेल और खेला संग मेरे चलता है
अब दूर अकेले उस कोने में मै खड़ा मिलता हूँ

बरसों की ये लड़ाई अब भी साथ चलती है
परिवार चिंता आँखों में पल पल गड़ती जाती है

मौसम भी होते है ऐसा कभी महसूस किया था मैंने
अब तो चारों मौसम मेरे एक से अब गुजर जाते हैं

रिश्तों का ये व्यापार बड़ा और खडा है
यंहा पर सब का सब मेरा उधार पड़ा है

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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