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किलै यू मन


किलै यू मन

किलै यू मन
क्ख्क उड़ी कु जांद ….२
रहैदूँ किले ना ई
जिकोड़ी मा अल्ज्युं
किलै यू मन
क्ख्क उड़ी कु जांद ….

डाळी डाळी मा बैठी
फुर उड़े तू कैसी ….२
माया क्ख्क लगै तिल
किले हेरदी आंखी
किलै यू मन
क्ख्क उड़ी कु जांद …

अल छाला पल छाला
ऊ किलै किलै घेर दी घेरा ….२
मनखी की गेड मा
हर्ची गे किले ऊ धागा
किलै यू मन
क्ख्क उड़ी कु जांद …

किलै यू मन
क्ख्क उड़ी कु जांद ….२
रहैदूँ किले ना ई
जिकोड़ी मा अल्ज्युं
किलै यू मन
क्ख्क उड़ी कु जांद ….

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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