साईं मन भीतर
साईं मन भीतर चोर बैठा
साईं आप को बिठाऊं कैसे
मन मलिनता को मिटाऊं कैसे
साईं मन भीतर चोर बैठा ………
जग ही ऐसा है
ये दर्पण अब दिखाऊं कैसे
साफ़ कराऊं कैसे
साईं मन भीतर चोर बैठा ………
बहता जाता हूँ पाप में
ये पाप सागर पार करों कैसे
अपने को बाहर निकलूं कैसे
साईं मन भीतर चोर बैठा ………
तेरी गगरी उठाना चाहता हूँ
सुरखा को छिपाऊं कैसे
उस ज्ञान को पाऊं कैसे
साईं मन भीतर चोर बैठा ………
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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