ADD

क्या डर है उसे


क्या डर है उसे

आदमी अपने आप से घबराता क्यों है
अपने ना होने का गम उसे सताता क्यों है
आदमी अपने आप से घबराता क्यों है

एक मिट्टी की दीवार है कच्ची एक वो
अहम में इतना अपने आप से गुम हो जाता क्यों है
आदमी अपने आप से घबराता क्यों है

क्या डर है उसे गुजर जाने सा ये पल सा
खुली किताब है वो मगर ना पड़ पाता वो क्यों है
आदमी अपने आप से घबराता क्यों है

है ना उसका इस जंहा में कुछ भी ना
फिर भी यंहा कुछ पाने को मचल जाता क्यों है
आदमी अपने आप से घबराता क्यों है

हवा का एक झोंका है गुजर जायेगा
आखरी वक्ता आया तब ही उसे समझ आयेगा
आदमी अपने आप से घबराता क्यों है

आदमी अपने आप से घबराता क्यों है
अपने ना होने का गम उसे सताता क्यों है
आदमी अपने आप से घबराता क्यों है

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ