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बात करती है वो


बात करती है वो

बात करती है आज के वो जमाने की
गुजरे पल में हमने उसे भी छुपके रोते देखा
बात करती है आज वो जमाने की

बह जाती है वो आज रिश्तों के समंदर में
गरीबी में हमने उन्हें उनसे किनार करते देखा
बात करती है आज वो जमाने की

हाथ पकड वो चलती थी जब भी मेरा राहों में
दीवानों को हमने आग में सुलगते देखा है
बात करती है आज वो जमाने की

आज वक्त है वो बिता पल है बस साथ मेरे
गैर की बाँहों में रहकर सुलगाकर खाक करके हमे रखा है
बात करती है आज वो जमाने की

बस मै इतना समझ बैठा था की वो मेरी तकदीर थी मेरी
अब उसे हमने किसी और की तकदीर बनकर बैठे देखा है
बात करती है आज वो जमाने की

बस इतना था फसाना मेरे इश्क का दोस्तों
अब हमने कब्र को घर अपना बनके रखा है
बात करती है आज वो जमाने की

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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