बस श्रधा और सुमन
खटीमा आज भी देख रहा है
उसका उत्तराखंड कंहा जा रहा है
दो शब्द निकलते है आज के दिन
बाकी दिन वो सो रहा है
धायँ धायँ स्वर गूंजे थे मसूरी में
फिर भी पहाड़ क्यों नही जाग रहा है
बलिदान क्या हमार व्यर्थ ही जायेगा
बस आज भी वो हम से पूछ रहा हैं
सपना हमारा अब भी सपना है
उसे पूरा करने कोई क्यों नही आगे बढ़ रहा है
खटीमा आज भी देख रहा है
उसका उत्तराखंड कंहा जा रहा है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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